प्रथ्वी अपनी अंक में लिए घूमती है मुझे। मां के आंचल में छिपा निर्मल हूं। प्रथ्वी अपनी अंक में लिए घूमती है मुझे। मां के आंचल में छिपा निर्मल हूं।
मैं मांगू आसमां और रब से तुझे। तुम मेरी आंखों के अश्क की धारा हो। मैं मांगू आसमां और रब से तुझे। तुम मेरी आंखों के अश्क की धारा हो।
सौगंध है इस मिट्टी की अब ये जान है सिर्फ वतन की सौगंध है इस मिट्टी की अब ये जान है सिर्फ वतन की
मैंने मानवता को जिंदा रखा है फिर भी, मैं व्यर्थ के आरोप जहन में लपेटे हूँ। मैंने मानवता को जिंदा रखा है फिर भी, मैं व्यर्थ के आरोप जहन में लपेटे हूँ।
मै सरकारी ऑफिस हूं, अब मै लबालब भर गया हूं। मै सरकारी ऑफिस हूं, अब मै लबालब भर गया हूं।
मैं भारत की नारी हूं सब पुरुषों पर भारी हूं बाधाएं चाहे कितनी हों समय से नहीं मैं मैं भारत की नारी हूं सब पुरुषों पर भारी हूं बाधाएं चाहे कितनी हों समय ...